शहडोल जिले के ग्राम अंतरा में कल्चुरी कालीन मां कंकाली का मंदिर है ,माँ के दरबार में सबकी मनोकामना पूरी होती है। यहां हर समय श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। लेकिन इस देवी स्थल में नवरात्रि के समय भक्तों का तांता लगा रहता है।नवरात्रि मे यहां हर दिन भण्डारे का आयोजन होता है और भजन-कीर्तन नियमित चलते हैं। वर्षो से यहां साल की दोनों नवरात्रि में जवारे बोये जाते हैं और दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए मन्नत मांगने आते हैं। यहां दोनों नवरात्र के समय नगाड़ों की धुन से देवी का दरबार गूंजता रहता है।
शहडोल संभागीय मुख्यालय से लगभग नौ किलोमीटर दूर स्थित इस पांडवनगर कालीन मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। ऐसी मान्यता है कि यहां अज्ञात वास के समय पांडव रुके थे उसी समय इस मंदिर की स्थापना की गई थी। शहडोल में ऐतिहासिक पांडव कालीन विराट मंदिर से ही इस मंदिर की कथा जुड़ी हुई है। हर साल यहां नवरात्र के समय मेले जैसा माहौल रहता है।
कंकाली मां के मंदिर का धीरे-धीरे विस्तार भी हो रहा है और इस मंदिर परिसर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का भी प्रस्ताव जिला प्रशासन ने तैयार किया है। इस समय यहां मां कंकाली की कृपा पाने के लिए सुबह से शाम तक रेला लगा हुआ है और देवी गीतों से माता का दरबार गूंज रहा है।
अंतरा की कंकाली माता का इतिहास बहुत पुराना है। मंदिर में जो प्रतिमा विराजमान है वह कल्चुरी कालीन है और पांडवों के द्वारा इस प्रतिमा को यहां स्थापित किया गया था। उसके बाद मां की कृपा जिले में ही नहीं दूर-दूर तक फैली और लगातार मां की कृपा पाने के लिए यहां श्रद्धालुओं का तांता लग रहा है।
Ma Kankali Devi |
शहडोल संभागीय मुख्यालय से लगभग नौ किलोमीटर दूर स्थित इस पांडवनगर कालीन मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। ऐसी मान्यता है कि यहां अज्ञात वास के समय पांडव रुके थे उसी समय इस मंदिर की स्थापना की गई थी। शहडोल में ऐतिहासिक पांडव कालीन विराट मंदिर से ही इस मंदिर की कथा जुड़ी हुई है। हर साल यहां नवरात्र के समय मेले जैसा माहौल रहता है।
कंकाली मां के मंदिर का धीरे-धीरे विस्तार भी हो रहा है और इस मंदिर परिसर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का भी प्रस्ताव जिला प्रशासन ने तैयार किया है। इस समय यहां मां कंकाली की कृपा पाने के लिए सुबह से शाम तक रेला लगा हुआ है और देवी गीतों से माता का दरबार गूंज रहा है।
अंतरा की कंकाली माता का इतिहास बहुत पुराना है। मंदिर में जो प्रतिमा विराजमान है वह कल्चुरी कालीन है और पांडवों के द्वारा इस प्रतिमा को यहां स्थापित किया गया था। उसके बाद मां की कृपा जिले में ही नहीं दूर-दूर तक फैली और लगातार मां की कृपा पाने के लिए यहां श्रद्धालुओं का तांता लग रहा है।
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